Assembly VIII-C 02-08-2016

Class: VIII ​- C
Class Teacher : MS. Divya Chaturvedi
Class Rep : Ms. Surbhi/Ms.Reema Khosla
Headmistress: Ms. Rashmi Malhotra
Topic: मित्रता
Date :2/8/2016

Cultural Program Incharge : Ms. Binu Channan

IT Incharge : Ms. Sarika Kaushal

Photography : Mr. Shankar

मानव एक सामाजिक प्राणी है और सामाजिक होने का अर्थ है किसी समाज का हिस्सा होना। इसलिए मानव के लिए संबंधों का बहुत अधिक महत्व है जिसके सहारे वह अपना सारा जीवन व्यतीत करता है।ये एक ऐसा सम्बन्ध है जिसे आप अपनी इच्छा से चुनते और जोड़ते हैं वो है ‘मित्रता’ । मित्र के बिना जीवन अधूरा होता है । मित्र जीवन के रोगों की औषधि होती है । मित्रता एक अनमोल रत्न है और सच्चा मित्र ईश्वर का वरदान है I ऊपरी मित्रता निभाने वाले, सुख में हमारा साथ देने वाले मित्र तो बहुत मिल जाते हैं किन्तु सच्चे मित्र तो कुछ ही होते हैं जो जीवन कि हर परिस्थिति में हमारा साथ निभाते हैं I विपत्ति के समय साथ देने वाला ही सच्चा मित्र होता है I सच्चे मित्र संकट के समय आगे खड़े रहते हैं I जो मित्र के दुख को बड़ा समझे, अवगुणों को हमारे सामने प्रकट कर उन्हें दूर करने मैं सहायता करे, हमें सही मार्ग दिखाए, प्रेरणा दे, पीठ पीछे अहित न करे और मन में कुटिलता न रखे वही सच्चा मित्र होता है I इतने गुणों के परिपूर्ण मित्र का मिलना वास्तव में खजाना पा लेने के सामान है I धर्म ग्रंथों में ऐसे ही मित्रों के गुण गाये गये है, अर्जुन-कृष्ण की मित्रता, श्रीकृष्ण-सुदामा कि मित्रता । श्रीराम और सुग्रीव की मित्रता एक पावन सम्बन्ध की सूचक है । श्रीकृष्ण और सुदामा की मित्रता लोक प्रसिद्ध है । सुदामा गरीब ब्राह्मण था और प्रभु श्रीकृष्ण राजा थे तब भी श्रीकृष्ण जी ने मित्रता निभाई और सुदामा की मदद की । सच्चे मित्र और मित्रता का सार तुलसीदास जी ने इन पंक्तियों में दर्शाया है :- जो मित्र दुःख होई न दुखारी, तिनहि विलोकत पातक भारी ॥